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भगवान महावीर
हैं जिनको हम क्रमश: अज्ञानमय और ज्ञानमय भूमिकाओं के नाम से पहिचान सकते हैं। अज्ञान की सात भूमिकाएँ ये हैं
१. वीज जागृत', २. जागृत', ३. महाजागृत', ४. जागृत - स्वप्न ५. स्वप्न, ६. स्वप्न जागृत ७. सुपुमक', इसी प्रकार ज्ञान
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१.म भूमिका में "प्रहत्व ममत्व" बुद्धि की पूर्ण जागृति तो नहीं होती पर टमको जागृति यो चिन्ह दृष्टि गोचर हो जाने हैं । इमा काररा इनका नाम याज दागत रक्सा गया है। यह भूमिका बनम्पति के ममान शुद्र जीवों में भी मानी पाती है।
..म भूमिका में "प्रदत्य ममत्व" उदि अल्मान में जान हो जाता है, उनी पारप इसका नाम जागृत ग्न्तया गया है। यह भूमिका कोट पतग और पशुओं में भी मानी पाना है।
३. म भूमिका में "प्रात ममल" का उशि और मा पुष्ट होताई, ममे यह गदा पाव कहलाती है । यह भूमिका मनुष्य और देवतामों में पाई जाती है ।
४. चीधी भूमिका में "जागृत अवस्था" फेब्रन का नाश हो जाता है। नेमे कही जगद दो चन्द्रमा हिमां देना इत्यादि इममे म भूमिका का नाम "मात स्वप्न" रस्सा गया।
५. म भूमिका में निद्रित प्रारथा में भाये हुए रन का नेतन्य अवस्था में सो अनुमत्र होता धमका ममावेश रएता दे, इमलिए यह "खान" नाम मे पुकारी जानी।
म भूमिका में कई ग्रामक चालू रहने वाले ग्राम का समावेश रहता है। यह स्वान गरीर पात होने पर भी चालू रहता है। इससे यह स्वम जागृत कहलाती है।
७. यह भूमिका गाई निद्रा की होती है। इसमें "ज" के समान स्थिति हो जाती है। फेवल मात्र कर्म वासना उप में रहते है, इसी से यह सुपुप्ति कहलाती है। इनमें से ७ तक को भूमिकाएं सष्ट रूप से मनुष्यों के अनुभव में आती हैं। (योग यशिष्ट उत्पत्ति प्रकरण ११७)