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भगवान महावीर ऊपर बताये हुए जिन कारणों से नवीन बन्धन होता है उनका अभाव होने से नवीन बन्धन का होना रुक जाता है और जो सञ्चित कर्म हैं वे अपनी स्थिति पूरी करके अपने आप समाप्त हो जाते हैं और उनको जीव तप आदि से भी छिपा देते हैं। जब नवीन कमों का आश्व नहीं होगा और पूर्व-बद्ध कमाँ की निर्जरा हो जायगी तव आत्मा से सब कर्मों के पृथक होने के कारण आत्मा शुद्ध हो जायगी और उसकी इस शुद्ध अवस्था को हो मोक्ष कहते हैं। मोक्ष मे आत्मा से सब कर्म पृथक हो गये, इसलिए कर्मजनित विकार भी प्रात्मा से दूर हो गये। ये विकार ही नवीन वन्धन के कारण हैं, इसलिए मोक्ष प्राप्त होने के बाद कम फिर मल से लिप्त नहीं होते, अर्थात् मुक्त जीव मुक्ति से वापम नहीं आ सकते । जिस मुक्ति ने वापस आना पड़े वह मुक्ति कैसी? आवागमन तो बना ही रहा । जो लोग मुक्ति से वापस आना मानते हैं तो मुक्ति शब्द का प्रयोग करके सस्कृत-भाषा का भी खून करते हैं। वे कहते हैं कि ईवर जीव को वेदोक्त ज्ञान-सहित वेदोक्त कर्मों के करने का फल भोगने के लिए मुक्ति देता है और कर्म मर्यादासहित होते हैं। उनका मुक्ति-रूप फल भी मर्यादा-सहित होता है, अर्थात् जीव मुक्ति में अपने कर्मों का फल भोग कर कुछ थोड़े से बचे हुए कमों के कारण जन्म-मरण करता हुआ मसार मैं फिर पर्यटन करता है। उन्हें यह सोचना चाहिए कि मुक्ति तो जीव के सर्वथा कर्म-रहित होने को कहते हैं और कमों के फल तो संसार में आवागमन करके ही भोगे जाते हैं।
जैन-धर्म में यह माना जाता है कि इस मध्यलोक और