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________________ ३४३ भगवान् महावीर याहै ? इन सब बातों को जैन तत्व-ज्ञान के अन्तर्गत सात भागों में विभक्त कर दी हैं जिनको स्गत तत्व कहते हैं। अर्थात् जोव, अजीव, आश्रव (पुद्गल के साथ जीव का सम्बन्ध होने का कारण) वन्ध, सँवर (उन कारणों को रोकने का प्रयत्न) निर्जरा (उन बन्धनों को तोड़ने का उपाय ) मोक्ष ( उन सब बन्धनों से आजाद हो जाना ) । इन्ही सात तत्वों के द्वारा जीव की शुद्ध और अशुद्ध दशाओं का बोध होता है। . मोक्ष को मानने वाले लोग जीव को वर्तमान और भविष्य अवस्था को मानते हैं। व जीव को ज्ञान स्वरूप एव प्रकृति से भिन्न भी मानते है । पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उनके अनादिव एव अविनाशित्व को स्वीकार नहीं करते। उनके मतानुसार गर्भ से लेकर मृत्यु पर्यन्त ही जीव का अस्तित्व रहता है बाद में नष्ट हो जाता है। पर यदि वे सूक्ष्म दृष्टि से इस विषय पर विचार करेंगे तो अवश्य उन्हें अपने इस कथन में भ्रम मालम होगा । में सुखी हूँ, मैं दुखी हूँ, मैं राजा हूँ, मैं रक्षक हूँ, आदि वालों में "मैं" शब्द का वाच्य इस शरीर से भिन्न अवश्य काई दूसग पदार्थ है और वह जोव है। सुख, दुखादि का अनुभव पुद्गल को नहीं होता उसका अनुभव करने वाला कोई दूसरा द्रव्य अवश्य होना चाहिए जो कि उसके साथ सम्बद्ध है। इसके अतिरिक्त श्वासोच्छ्रास आदि क्रियाए भी उसके अस्तित्व को साबित करती हैं। कंवल पुद्गल में श्वासोच्छ्रास नहीं हो सकता । जहां श्वासोच्छ्रास है वहां जीव का अस्तित्व होना चाहिए । आकाक्षा, इच्छा, स्मृति आदि बातों से भी जीव के अस्तित्व की पुष्टि होती है।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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