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________________ ३३९ भगवान् महावीर खान होती है । प्रत्येक शरीर में आत्मा भिन्न भिन्न ही है; तथापि सब श्रात्माओं में रही हुई समान जाति को अपेक्षा से कहा जाता है कि-"सव शरीरों में आत्मा एक है।" ___व्यवहार-यह नय वस्तुओं में रही हुई समानता की उपेक्षा करकं, विशेषता की ओर लक्ष खींचता है इस नय की प्रवृति लोक व्यवहार की तरफ है । पाँच वर्म वाले भँवरे को 'काला भवर' बताना इस नय की पद्धति है। 'रस्ता आता है' कुंडा मरता है, इन सब उपचारो का इस नय मे समावेश हो जाता है। ऋजु सूत्र-वस्तु में होते हुए नवीन नवोन रूपान्तरो की अोर यह लक्ष्य आकर्पित करता है। स्वर्ण का मुकुट, कुण्डल आदि जो पायें हैं, उन पर्यायों को यह नय देखता है। पर्यायों के अलावा स्थायो 'द्रव्य की ओर यह नय गपात नहीं करता है। इसीलिये पर्याय विनश्वर होने से सदा स्थायी द्रव्य इस नय की दृष्टि में कोई चीज नहीं है। शब्द-इस नय का काम है अनेक पर्याय शब्दों का एक अर्थ मानना । यह नय बताता है कि, कपड़ा, वस्त्र, वसन आदि शब्दों का अर्थ एक ही है। समभिरूढ़-इस नय की पद्धति है कि पर्याय शब्दों के भेद से अर्थ का भेद मानना । यह नय कहता है कि कुभ, कलश, घट आदि शब्द भिन्न अर्थ वाले हैं, क्योकि कुभ, कलश, घट आदि शब्द यदि भिन्न अर्थ वाले न हों तो घट, पट, अश्व आदि शब्द श्री भिन्न अर्थ वाले न होने चाहिये । इसलिए शब्द के भेद से अर्थ का भेद है।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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