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भगवान् महावीर
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का भेद और अभेद बतानेवाले | सिद्धान्त यदि आक्षेप करने को उतारु हो तो वे अमान्य ठहरते हैं ।
एक दूसरे पर
यह समझ रखना चाहिये कि नय आंशिक सत्य है, आंशिक सत्य सम्पूर्ण सत्य नही माना जा सकता है । आत्मा को नित्य या घट को नित्य मानना सर्वाश में सत्य नहीं हो सकता है । जो सत्य जितने अंशों में हो उसको उतने ही श्रंशों में मानना युक्त है ।
इसकी गिनती नहीं हो सकती है कि वस्तुतः नय कितने हैं । अभिप्राय, या वचन प्रयोग जब गणना से बाहर हैं तब नय जो उनसे जुदा नहीं हैं कैसे गणना के अन्दर हो सकते है । यानी नयो की भो गिनती नहीं हो सकती है। ऐसा होने पर भी नयों के मुख्यतया दो भेद बताये गये हैं । द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक । मूल पदार्थ को 'द्रव्य' कहते हैं; जैसे -- घड़े की मिट्टी । मूल द्रव्य के परिणाम को पर्याय कहते हैं । मिट्टी अथवा अन्य किसी द्रव्य मे जो परिवर्तन होता है वह सब पर्याय है । द्रव्यार्थिक का मतलब है, मूल पदार्थों पर लक्ष्य देने वाला अभिप्राय और 'पर्यार्थिक नय' का मतलब है, पर्यायो पर लक्ष्य करनेवाला अभिप्राय | द्रव्यार्थिक नय सब पदार्थों को नित्य मानता है । जैसे-घड़ा, मूलद्रव्य मृतिका रूप से नित्य है । पर्यायार्थिक नय सब पदार्थों को अनित्य मानता है । जैसे स्वर्ण की माला, जंजीर कड़े अंगूठी आदि पदार्थों में परि• वर्तन होता रहता है । इस अनित्यत्व को परिवर्तन होने जितना ही समझना चाहिये, क्योकि सर्वथा नाश या सर्वथा अपूर्व उत्पाद किसी वस्तु का कभी नही होता है ।
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