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________________ तीसरा अध्याय नय एक हीवस्तु के विषय में भिन्न भिन्न दृष्टि विन्दुओ से उत्पन्न ने वाले भिन्न भिन्न यथार्थ अभिप्राय को "नय" कहते हैं। एक ही मनुष्य भिन्न भिन्न अपेक्षाओ'से 'काका, मामा, भतीजा, भानेज, भाई, पुत्र, पिता, ससुर और जमाई समझा जाता है यह "नय” के सिवा और कुछ नहीं है। हम यह बता चुके हैं कि वस्तु में एक ही धर्म नहीं है। अनेक धर्म वाली वस्तु में अमुक धर्म से सम्बन्ध रखने चाला जो अभिप्राय बंधता है। उसको जैन शाखों ने "नय" संज्ञा दी है। वस्तु में जितने धर्म है, उनसे सम्बन्ध रखने वाले जितने अभिप्राय हैं, वे सब 'नय' कहलाते हैं। एक ही घट मूलवस्तु द्रव्य-मिट्टी की अपेक्षा से अविनाशी है, नित्य है। परन्तु घट के आकार-रूप परिणाम की दृष्टि से विनाशी है। इस तरह भिन्न मिन्न दृष्टि विन्दु से घट को नित्य और विनाशी मानने वाली दोनों मान्यताएं 'नय' है। इस बात को सब मानते हैं कि आत्मा नित्य है और यह बात है भी ठीक क्योंकि इसका नाश नहीं होता है। मगर इस बात का सब को अनुभव हो सकता है कि उसका परिवर्तन
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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