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________________ भगवान महावीर ३३२ प्रकार । अर्थात् सात वचन प्रकार के समूह को सप्त भगी कहते हैं । इन सातो वचन प्रयोगो को भिन्न २ अपेक्षा से भिन्न भिन्न दृष्टि से समझना चाहिये। किसी भी वचन प्रकार को एकान्त दृष्टि से नहीं मानना चाहिये। यह बात तो सरलता से समझ में आ सकती है कि यदि एक वचन प्रकार को एकान्त घटि से मानेंगे तो दूसरे वचन प्रकार असत्य हो जायगे। यह सप्त भंगी ( सात वचन प्रयोग) दो भागों में विभक्त की जाती है। एक को कहते हैं "सकला देश" और दूसरे को "विकला देश" । "अमुक अपेक्षा से यह घट अदित्य ही है।" इस वाक्य से अनित्य धर्म के साथ रहते हुए घट के दूमरे धर्मों को वोधन कराने का कार्य 'सकला देश' करता है। 'सकल' यानी तमाम धर्मों का 'प्रादेश' यानी कहने वाला। यह प्रमाण चाक्य भी कहा जाता है। क्योंकि प्रमाण वस्तु के तमाम धर्मों को स्पष्ट करने वाला माना जाता है। "अमुक अपेक्षा से घट अनित्य ही है।" इस वाक्य से घट के केवल अनित्य धर्म को बताने का कार्य विकला देश' का है। "विकल' यानी अपूर्ण । अर्थात् अमुक वस्तु धर्म को 'आदेश' यानी कहने वाला विकला देश है। विकला देश नय वाक्य माना गया है। 'नय प्रमाण का अंश है । प्रमाण सम्पूर्ण वस्तु को ग्रहण करता है, और नय उसके अंश को। इस बात को हर एक समझता है कि शब्द या वाक्य का कार्य अर्थबोध कराने का होता है। वस्तु के सम्पूर्ण ज्ञान को 'प्रमाण' कहते हैं। और उस ज्ञान को प्रकाशित करने वाला वाक्य प्रमाण वाक्य कहलाता है। वस्तु के किसी एक अंश के
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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