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भगवान महावीर
मोक्ष है और उसका मूल कारण धर्म है । वह धर्म संयम वगैरह दस प्रकार का है। यह धर्म संसार सागर से पार लगाने वाला है । अनन्त दुख रूप संसार है, और अनन्त सुख रूप मोक्ष है । संसार के त्याग का और मोक्ष प्राप्ति का मुख्य हेतु धर्म के सिवाय दूसरा कोई नहीं । लगड़ा मनुष्य भी जिस प्रकार वाहन के श्राश्रय से पार हो सकता है उसी प्रकार धन-कर्मी भी धर्म के श्राश्रय से मोक्ष पा सकता है ।"
इस प्रकार देशना देकर प्रभु स्थिर हुए, तत्पश्चात् पापा के राजा हस्तिपाल ने अपने आठ स्वप्न का फल प्रभु से पूछा, जिसका अलग अलग उत्तर प्रभु ने दिया । उसके पश्चात् गौतम स्वामी के पूछने पर उन्होने अवसर्पिणी काल के पाँचवें और छठे काल की स्थिति बतलाई । जिसका विस्तृत वर्णन करना यहां आवश्यक नहीं जान पडता ।
उसी दिन की रात्रि को अपना मोक्ष जान प्रभु ने विचार किया कि - " गौतम का मुझ पर बहुत स्नेह है और वही उस की कैवल्योपत्ति मे वाघा देता है । इस कारण उस स्नेह का उच्छेद करना आवश्यक है ।" यह सोच उन्होंने गौतम से कहा" गौतम । इस समीपवर्ती ग्राम मे देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण हैं, वह तुम से प्रतिबोध पावेगा, इसलिये तुम वहाँ जाओ ।" प्रभु की आज्ञा मस्तक पर धारण कर गौतम वहाँ गये और उन्होने उस ब्राह्मण को उपदेश देकर राह पर लगाया । इधर कार्तिक मास की अमावस्या को पिछली रात्रि के समय स्वाति नक्षत्र के चन्द्रमा में श्री वीर प्रभु ने पचपन अध्ययन पुण्य फल विपाक सम्बन्धी और उतने ही पाप फल विपाक सम्बन्धी कहे । उसके
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