________________
२५१
भगवान महावीर
कह देना और "किया जा रहा हो" उसे "कर डाला" कह देना ऐसा जो अरिहन्त प्रभु कहते हैं वह ठीक नहीं मालूम होता । इसमें प्रत्येक विरोध मालूम होता है। वर्तमान और भविष्य क्षणों के व्यूह के योग निष्पन्न होते हुए एक कार्य के विषय मे "किया" ऐसा कैसे कहा जा सकता है। जो अर्थ और क्रिया का विधान करता है उसी में वस्तुत्व रहता है। कार्य यदि आरम्भ से ही "किया" ऐसा कहलाने लग जाय तो फिर शेष क्षणों में किये हुए कार्य में अवश्य अनवस्था दोष की उत्पत्ति होती है। युक्ति से यही सिद्ध होता है कि कार्य पूर्ण हो चुका है, वही स्पष्ट रूप से किया हुआ कहा जा सकता है । इसलिये हे मुनियों। जो मैं कहता हूँ वही प्रत्यक्ष सत्य है। उसे अङ्गीकार करो । जो युक्ति से सिद्ध होता हो उसी को ग्रहण करना बुद्धिमानों का काम है। सर्वज्ञ नाम से प्रसिद्ध अरिहंत प्रभु मिथ्या बोलते हो नहीं है ऐसी कल्पना करना व्यर्थ है क्योंकि महान् पुरुषों का भी कभी कभी स्खलित हो जाया करते हैं।"
जमालि के इस वक्तव्य को सुन कर मुनिचोले-"जमालि । तुम यह विपरीत कथन क्यो करते हो! राग-द्वेष से रहित अर्हत प्रभु कभी असत्य नहीं बोलते । उनकी वाणी मे प्रत्यक्ष तथा प्रमुख दोष का एक अंश भी नहीं होता। आध समय में यदि वस्तु निप्पन्न हुई न कहलाय तो समय के अवशेष पन से दूसरे समय में भी उसकी उत्पत्ति हुई ऐसा कैसे कहा जा सकता है। अर्थ और क्रिया का साधकपन वस्तु का लक्षण है। किसी को भी कोई कार्य करते हुए देख कर यदि हम उसे पूछे कि "क्या