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भगवान महावीर
कोई सेवक घर पर न होने से चन्दना ही उसके पैर धोने के लिये वहाँ आई। यद्यपि सेठ ने उसे ऐसा करने से मना किया तथापि पितृभक्ति से प्रेरित होकर उसने न माना और पैर धोने लगी। उसी समय उसका स्निधि, श्याम केशपाश, कीचड़युक्त भूमि में पड़ गया। यह देख सेठ ने पुत्री स्नेह से प्रेरित हो प्रेमपूर्वक उसके केशपाश को समेट दिया। "मूला" यह सब दृश्य देख रही थी। उसने उसी समय मन में सोचा कि जिस वात से मैं डर रही थी वही आगे आ रही है। अब यदि इस लड़की का उचित प्रतिकार न किया जायगा तो मेरी दुर्दशा का अन्त नरहेगा । इस प्रकार उसके विनाश का सकल्प मन ही मन कर वह योग्य अवसर देखने लगी। कुछ दिनों पश्चात् अवसर देखकर उसने एक नाई को घुलवाया और उससे उसके वाल मुण्डवा दिये । तत्पश्चात् उसके पैर में लोहे की वेड़ी डाल कर "मूला" ने उसको बहुत पीटी तदनन्तर एकान्त के किसी एक कमरे में उसे बन्द कर बाहर का ताला लगा दिया। पश्चात् नौकरो से कह दिया कि सेठ के पूछने पर भी उन्हें उस कमरे के विपय में कोई कुछ न कहे । इस प्रकार का आदेश सब लोगो को देकर वह अपने नैहर को चली गई। इधर सेठ ने नौकरों से "चन्दना" के बारे में पूछा पर मूला के डर के मारे किसी ने भी स्पष्ट उत्तर न दिया ? इससे सेठ ने यह समझ कर मौन धारण कर लिया कि शायद वह अपनी सहेलियों में से किसी के यहां मिलने को गई होगी। पर जब दूसरे और तीसरे दिन भी उसने "चन्दना" को न देखा तब उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सब सेवको को धमका कर कहा कि सत्य बतलाओ"चन्दना" कहां है नहीं तो मैं