SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर २२२ "जो होनहार होता है वही होता है" इस नियतिवाद के सिद्धान्त को ग्रहण किया ! __ यहां से विहार कर प्रभो 'कोल्लाक' और 'स्वर्णखल्ल' स्थानों में विचरते हुए 'ब्राह्मण' ग्राम में आये । इस ग्राम में मुख्य दो मुहल्ले थे। जिनके नन्द और उपनन्द दोनों भाई मालिक थे । भगवान् महावीर तो आहार लेने के निमित्त नन्द के महल्ले में गये, वहां पर उन्हे नन्द नेवड़ीहीभक्तिपूर्वक आहार करवाया। इधर "गौशाला" उपनन्द का बड़ा घर देख उधर गया । उपनन्द की आज्ञा से उसकी एक दासी इसे वासी चावल का आहार देने लगी। यह देख "गौशाला" उपनन्द का तिरस्कार करने लगा। इससे क्रोधित हो उपनन्द ने दासी को कहा कि यदि यह अन्न नलेता हो तो इसके सिरपर डाल दे। दासी ने ऐसा ही किय । इस पर "गौशाला" ने अत्यन्त क्रोधित होकर कहा कि “यदि मेरे गुरु में तप का तेज हो तो यह मकान जल कर भस्म हो जाय ।" प्रभु का नाम सुन कर आस पास रहने वाले व्यन्तरों ने उस घर को घास के पूले की तरह भस्म कर डाला। यहां से विहार करके भगवान् महावीर 'चम्पापुरी' नगरी को पधारे। यहां पर उन्होंने दो दो मास क्षपण करने की प्रतिज्ञा लेकर तीसरा चर्तुमास व्यतीत करना आरम्भ किया । चतुर्मास समाप्त करके "गौशाला" सहित प्रभो फिर 'कोल्लाक नामक ग्राम में आये। वहां एक शून्य गृह के अन्दर वे कायोत्सर्ग करके ध्यान मग्न होगये । “गौशाला" बन्दर की तरह चपलता करता हुआ उसके द्वार पर बैठ गया। उस ग्राम के स्वामी को "सिंह" नामक एक पुत्र था। नवयौवनावस्था में होने के कारण वह अपनी “विघुन्मती" दासी के
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy