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________________ भगवान महावीर २२० अलंकृत कर रक्खी थी, उसी में आकर यह भी ठहरा। इधर प्रभु मासक्षपण का पारण करने के निमित्त शहर में गये। और इन्होंने "विजयश्रेष्टी" के यहां आहार लिया । उस समय आकाश से देवताओं ने रनवृष्टि, पुष्पवृष्टि वगैरह पांच दिव्य + प्रकट किये । इस सवाद को सुन कर "गौशाला" बड़ा विस्मित हुआ। उसने सोचा कि यह मुनि कोई सामान्य तो मालूम नहीं होता। क्योकि इसको भोजन देने वाले के घर में जब ऐसी स्मृद्धि हो गई, तब तो अवश्य ही यह कोई बड़ा आदमी है । इसलिये मैं तो अब इस पाखण्डमय व्यवसाय को छोड़ कर इसका शिष्य हो जाऊं क्योंकि यह गुरु कभी निष्फल नहीं जायगा । कुछ समय के पश्चात् जव प्रभु आये तो "गौशाला" उनके समीप पहुंचा और नमन करके बोला "प्रभो । मैंने तो सुज्ञ होकर भी अभीतक आप के समान् महापुरुष को नहीं पहचाना। यह मेरा दुर्भाग्य था। पर अब मैंने आपको पहचान लिया है अतः मैं आपका शिष्य होऊंगा। आज से एक मात्र तुम्ही मेरे शरण दाता हो।" इतना कह कर वह उनके उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा। पर प्रभु ने उसके उत्तर मे कुछ न कह कर मौन धारण किया। इधर "गौशाला" मनही मन प्रभु में गुरु भक्ति रख भिक्षावृत्ति से अपना निर्वाह करने लगा। वह दिन-रात प्रभु के साथ रहने लगा । कुछ दिनों पश्चात् प्रभु का दूसरा मास क्षपण पूरा हा। उस दिन उन्होंने "आनन्द" नामक गृहस्य के यहां आहार जिसके यहा तीर्थंकर भोजन लेते हैं। उसके यहा देवता लोग रलवृष्टि आदि पाच दिव्य प्रकट गरते है-ऐसाजैनशास्त्रों का कथन है।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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