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भगवान् महावीर
दिगम्बर शास्त्रों में वर्णित भगवान महावीर के जीवन को हम देखते हैं तो हमें मालूम होता है कि उनके गार्हस्थ्य जोवन मे सांसारिक भागों को (प्रवृत्ति मार्ग में) अन्य पूर्मताओ के होते हुए भी विवाह सम्बन्धी अपूर्णता रह गई थी। भगवान् महा वीर के गार्हस्थ्य जीवन की यह अपूर्णता क्या ऐतिहासिक दृष्टि में, क्या व्यवहारिक दृष्टि से, क्या आदर्श की दृष्टि से और क्या दार्शनिक दृष्टि से, किसी भी प्रकार की घुद्धि को मान्य नहीं हो मकती। इस बारे में श्वेताम्बर-ग्रन्थों का कथन ही हमें अधिक मान्य मालूम पड़ता है।
बुद्ध या जीवनचरित्र इन सब बातों में आदर्श रूप है। उनके जीवन में प्रवृत्ति मार्ग की । र्णता, उसकी वास्तविकता, उससे विरक्ति और अन्न में निवृत्ति मार्ग में प्रवेश बतलाया गया है। उनका जीवन चरित्र मनुष्य-प्रकृति के अध्ययन के साथ लिया गया है। श्वेताम्बरी-प्रन्यों में भी इसी पद्धति से भगवान महावीर का जीवनचरित्र लिखा गया है।
मर खयाल में भगवान महावीर बाल ब्रह्मचारी नहीं थे। वं गृहन्थ थे। गृहस्थ भी सामान्य नहीं, उत्कृष्ट श्रेणी के थे। उन्होंन गृहस्थाश्रम के प्रमोद-कानन में हजारों रसिकता की क्रियाए की होंगी। यौवन के लीला-निकेतन में युद्ध की तरह वे भी अपनी प्रेमिका के साथ रसमयो तरङ्गिणी के प्रवाह में प्रवाहित हुए होगे । पर प्रवृत्ति की इस पूर्णता के वे कभी आधीन नहीं हुए । हमेशा प्रवृत्ति पर वे शासन करते रहे, और अन्त में एक दिन इन प्रवृत्ति की लीलाओं से विरुद्ध हो अवसर पाकर सब भोग-विलासों पर लात मार कर वे सन्यासी हो