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साधना
२८८
ध्यान योग का आलम्वन कर देहभाव का सर्वतोभावेन विसर्जन करना चाहिए ।
२८६
भोग समर्थ होते हुए भी जो भोगो का परित्याग करता है वह कर्मों की महान निर्जरा करता है उसे मुक्ति रूप महा फल प्राप्त होता है |
२६०
तप नियम सयम स्वाध्याय ध्यान आवश्यक आदि योगो में जो यतना विवेक युक्त प्रवृत्ति है वही मेरी वास्तविक यात्रा है ।
२६१
सद्गुणों की साधना का कार्य भुजाओ से सागर तैरने जैसा है ।
२ε२ क्षमापना से आत्मा मे प्रसन्नता की अनुभूति होती है ।
२६३
असयम से निवृत्ति और सयम मे प्रवृत्ति करनी चाहिए ।