________________
धर्म और नीति (तप) ८१
२६६ तप नियम सयम स्वाध्याय ध्यान आवश्यक आदि योगो मे जो यत्ना विवेक प्रवृत्ति है वह मेरी वास्तविक यात्रा जीवन चर्या है।
२६७ साधक तप से शुद्ध हो जाता है ।
२६८ तप मूल चारित्र ही सर्वश्रेष्ठ चारित्र है।
२६६ तप दो प्रकार का है वाह्य और आभ्यन्तर । ये दोनो ६, ६ प्रकार का कहा गया है।
२७० तप रूपी लोह वाण से युक्त धनुष के द्वारा कर्म रूपी कक्च को भेद डालें।
२७१ निर्जरा का आकांक्षी सहनशील होवे ।
२७२ प्रत्याख्यान से आश्रव के द्वार वध हो जाते हैं।
૨૭રૂ. तप से पूर्ववद्ध कर्मो का नाश करो।
२७४ मात्मस्थ कपायो का दमन करने वाला ही सुखी होता है।