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धर्म और नीति (ब्रह्मचर्य) ६३
२१३ उग्र वह्मचर्य व्रत का धारण करना अत्यन्त कठिन है ।
२१४ अब्रह्मचर्य अधर्म का मूल है, महादोपो का स्थान है।
२१५ स्थिरचित्त भिक्षु दुर्जय काम भोगो को हमेशा के लिए छोड दे ।
२१६ इन्द्रियो के लिए जो शब्दादि विषय कामगुणात्मक है, वे ससार मे भँवर के समान हैं । अत. कामगुणात्मक इन्द्रियो के विषयो से दूर रहना चाहिए।