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________________ धर्म और नीति (ब्रह्मवयं) '५५ १८१ ऐक ब्रह्मचर्य की साधना से अनेक गुण स्वतः अधीन हो जाते हैं। १८२ जो शुद्ध भाव से ब्रह्मचर्य पालन करता है, वस्तुतः वही भिक्षु है। देवता, दानव, गधर्व यक्ष, राक्षस और किन्नर सभी ब्रह्मचर्य के साधक को नमस्कार करते है क्योकि वह एक बहुत दुष्कर कार्य है। १८४ ___ जो पुरुष स्त्रियो का सेवन नहीं करते, वे मोक्ष प्राप्ति मे सबसे अग्रसर है। “१८५ जो सुख, शील-गुण मे रत भिक्षुओं को प्राप्त होता है, वह सुख, काम भोगो मे राग रखने से नहीं मिल सकता। १८६ ब्रह्मचर्य-साधनारत साधक-भिक्षु शगार का वर्जन करे और शरीर को शोभा सज्जात्मक शगार धारण न करे । १८७ ब्रह्मचारी शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन पाच प्रकार के काम गुणो का सदा त्याग करे ।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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