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धर्म और नीति (अस्तेय) ४६
१६८ जो सविभागशील है, संग्रह और उपग्रह में कुशल है वही अस्तेयन्वत की सम्यक आराधना कर सकता है ।
जो असविभागी है, असग्रहरुचि है, अप्रमाण भोगी है, वह अस्तेय व्रत की सम्यक आराधना नहीं कर सकता है ।
तीसरा अदत्ता दान; दूसरो के हृदय को दाह पहुंचाने वाला, मरण भय पाप कष्ट तथा पर द्रव्य की लिप्सा का कारण तथा लोभ का कारण है । यह अपयश का कारण है, अनार्य कर्म है, सन्त पुरुषो द्वारा निन्दित है, प्रियजन और मित्रजनो मे भेद करने वाला है, तथा अनेकानेक रागद्वेष को उत्पन्न करने वाला है।
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जो रूप मे अतृप्त होता है उसकी आसक्ति बढती ही जाती है इसलिए उसे सन्तोष नही होता है । असन्तोष के दोप से दुखित होकर वह दूसरे की सुन्दर वस्तुओ का लोभी बनकर उन्हे चुरा लेता है।