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धर्म और नीति (सत्य) ४५
१५२ सत्य के प्रभाव से मनुष्य महासमुद्र मे भी सुरक्षित रहते है डूबते नहीं।
१५३ सत्य यश का मूल है।
१५४ सत्य विश्वास का परम कारण है।
१५५ सत्य स्वर्ग का द्वार है।
सत्य ही सिद्धि का सोपान है ।
किसी स्वार्थ या दवाव के कारण असाधु को साधु नही कहना चाहिए, साधु को ही साधु कहना चाहिए ।
१५८ सत्य वचन भी यदि कठोर हो तो वह मत बोलो।
१५६ सत्य मनुष्यो द्वारा स्तुत्य तथा देवो द्वारा अर्चनीय है।
जिसकी अन्तरात्मा सदा सत्य भावो से सम्पन्न है उसे विश्व के प्राणीमात्र के साथ मित्रता रखनी चाहिए।