________________
धर्म और नीति (सत्य) ३६
१२६ सम्यग्दृष्टि साधक को सत्य दृष्टि का अपलाप नही करना चाहिए।
१२७ असत्य वचन बोलने से बदनामी होती है परस्पर वर बढता है और मन मे संक्लेग की वृद्धि होती है ।
१२८ असत्यभापी लोग, गुणहीन के लिए गुणो का बखान करते हैं और गुणी के वास्तविक गुणो का अपलाप करते है ।
१२६ सत्य समस्त भावो तथा विपयो का प्रकाश करने वाला है ।
सत्य ही भगवान है।
१३१
ससार मे सत्य ही सारभूत है सत्य महासमुद्र से भी अधिक गमीर है।
१३२
सत्य चन्द्र मण्डल से भी अधिक सौम्य है, सूर्य मण्डल से भी अधिक तेजस्वी है। '
१३३ ऐसा सत्य वचन बोलना चाहिए जो हित मित और ग्राह्य हो । .