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धर्म और नीति (सत्य) ४१
१३४ सत्य भी यदि संयम का घातक हो तो नही बोलना चाहिए।
१३५
अपनी प्रशसा तथा दूसरो की निन्दा भी असत्य के समकक्ष है।
क्रोध मे अधा हुआ व्यक्ति सत्य शील और विनय का नाश कर देता है।
१३७
आत्मविद साधक अणुमात्र भी, माया और असत्य का सेवन न करे ।
१३८ विश्व के सभी सत्पुरुषो ने असत्य की निंदा की है।
१३६ ऐसा सत्य भी न बोलना चाहिए जिससे किसी प्रकार का पाप का आगमन होता हो ।
१४० अपनी स्वय की आत्मा के द्वारा सत्य का अनुसधान करो।
१४१ सदा हितकारी सत्य वचन बोलना चाहिए।