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धर्म और नीति ( श्रहिंसा) २६
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जिसे तू मारना चाहता है वह तू ही है, जिसे तू शासित करना चाहता है वह तू ही है, जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है ।
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यदि कोई अन्य व्यक्ति भी धर्म के नाम पर जीवो की हिंसा करते हैं तो हम इससे भी लज्जानुभूति करते हैं ।
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हिंसा मे लगे हुए अज्ञानी जीव अन्धकार से अन्धकार की ओर जा रहे हैं ।
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वैर वृत्ति वाला जब देखो तव वैर ही करता रहता है वह वैर को बढाने मे रस लेता है ।
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तत्त्वदर्शी समग्र प्राणिजनो को अपनी आत्मा के समान देखता है।
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किसी भी प्राणी के साथ वैर विरोध न बढावे ।