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________________ धर्म और नीति (अहिंसा) २७ ६२ हम ऐसा कहते हैं, ऐसा बोलते है, ऐसी प्ररुपणा करते हैं, ऐसी प्रजापना करते है, कि किसी भी प्राणी किसी भी भूत किसी भी जीव और किसी भी सत्व को न मारना चाहिए न उन पर अनुचित शासन करना चाहिए न उनको गुलामो की तरह पराधीन बनाना चाहिए, न उन्हे परिताप देना चाहिए और न उनके प्रति किसी प्रकार का उपद्रव करना चाहिए। उक्त अहिंसा धर्म में किसी प्रकार का दोप नही है यह ध्यान मे रखिए, अहिंसा पवित्र सिद्धान्त है । सर्व प्रथम विभिन्न मत मतान्तरो के प्रतिपाद्य सिद्धान्त को जानना चाहिए और फिर हिंसा प्रतिपाद्य मतवादियो से पूछना चाहिए कि हे ! प्रवादियो तुम्हे सुख प्रिय है या दु ख ? हमे दु ख अप्रिय है, सुख नही—यह सम्यक् स्वीकार कर लेने पर उन्हे स्पष्ट कहना चाहिए कि तुम्हारी तरह विश्व के समस्त प्राणीजीव भूत और सत्वो को भी दुख अशान्ति देने वाला है, महाभय का कारण है और दुख रूप है।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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