________________
धर्म और नीति (अहिंसा) २५
८५
त्रस काय का समारम्भ जीवन पर्यंत के लिए छोड़ दो।
यह हिंसा ही निश्चय बंधन है, मोह है, यही मृत्यु हैं
और नरक है।
८७
'इसने मुझे मारा' कुछ लोग इस विचार से हिंसा करते है, 'यह मुझे मारता है' कुछ लोग इस विचार से हिंसा करते हैं, 'यह मुझे मारेगा' कुछ लोग इस विचार से हिंसा करते हैं।
यह सब दु ख हिंसा मे से उत्पन्न होता है।
८६ अपने समान ही वाहर दूसरो को देखे ।
हिंसा एक से एक बढ़कर है, परन्तु अहिंसा ऐक से एक बढ़कर नही है अर्थात् अहिंसा की साधना से बढकर श्रेष्ठ दूसरी कोई साधना नही।
६१
जो हिंसा से उपरत हैं वही प्रजावान बुद्ध हैं ।