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धर्म और नीति (अहिंसा) २३
दुसरो को त्रास मत दो
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७७ मेधावी दयाधर्म के लिए क्षमाशील होता हुआ अपनी
आत्मा को प्रसन्न करे।
प्राणियो के प्राणो को मत हरो ।
७६ - हिंसा से विरत बने ।
८०
हे मुनि | किसी की भी हिंसा मत कर, इसमे महान
भय रहा हुआ है।
८१ प्राणियो के साथ क्रम से सयमशील हो ।
अभय दान देने वाले बनो ।
धर्म मे स्थित होते हुए सभी जीवो पर अनुकम्पा
करने वाले बनो।
.८४ अभय दान देने वाले ससार से पार उतर जाते है ।