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आर्य
प्राध्यात्म और दर्शन (दुर्लभांग) ३१७
६७८
परिपूर्ण पाचो इन्द्रियो की स्थिति प्राप्त होना दुर्लभ है ।
६७७
यह शरीर सपति दुर्लभ है ।
युद्ध
६७६
बार बार जीवन प्राप्त होना सुलभ नहीं है ।
६८०
याने कषायों से युद्ध करना बहुत ही दुर्लभ है ।
६८१
यहा से विध्वस हुयी आत्मा के लिए पुन ज्ञान प्राप्त होना दुर्लभ है ।
६८२
बहुत कर्मों के लेप से लिप्त प्राणियो के लिए सम्यक्ज्ञान की प्राप्ति सुदुर्लभ है ।
६८३
सुदुर्लभ वोधिलाभ की प्राप्ति के लिए विचरण करें
६८४
मनुष्यत्व निश्चय ही सुदुर्लभ है ।