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दुर्लभांग
९६८ निश्चय ही उत्तम धर्म का श्रवण दुर्लभ है ।
धर्म सुनने का प्रसग मिलना दुर्लभ है ।
९७० पुन. पुन. श्रद्धा प्राप्त होना दुर्लभ है।
९७१ श्रद्धा परम दुर्लभ है।
६७२ सम्यकज्ञान सुलभ रीति से प्राप्त होने योग्य नहीं कहा गया है ।
६७३ सबोधी याने सम्यकज्ञान निश्चय ही दुर्लभ है ।
६७४ शरीर द्वारा धर्म का परिपालन किया जाना दुर्लभ है।
९७५ श्रद्धानुसार ही त्याग प्राप्ती भी दुर्लभ है ।
९७६
आचरण करना ही सब से अधिक दुर्लभ है।