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________________ ६६२ बार बार मोह ग्रस्त होने वाला साधक न उस पार अर्थात न इस लोक का न न इस पार रहता है पर लोक का । मोह ६६३ जो मोह को क्षय करता है वह अन्य अनेक कर्म विकल्पो को क्षय करता है । ९६४ मोहमूढ व्यक्ति जहा भय नही वहा भय करता है और जहा भय की आशका नही वहा करता है । ६६५ जिस प्रकार वगुलि अण्डे से उत्पन्न होति है और अण्डा वगुलि से, इसी प्रकार मोह तृष्णा से उत्पन्न होता है और तृष्णा मोह से । ६६ जिसको मोह नही होता उसका दुख नष्ट हो जाता है । ६६७ मोह से राम द्वेष रूप विकार उत्पन्न होता है ।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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