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इन्द्रिय निग्रह
६५० पाच इन्द्रियो को वश मे कर अपनी आत्मा का उपसंहार करना चाहिए। याने प्रमाद की ओर बढ़ती हुयी आत्मा को धर्म की ओर लाना चाहिए।
९५१ जसे उत्तम प्रकार की औषधि रोग को नष्ट कर देती है पुन. उभरने नहीं देती, वैसे ही जितेन्द्रिय पुरुप के चित्त को राग तथा विषय रूपी कोई शत्रु सता नही सकता।
९५२ मनि सर्व इन्द्रियों को सुसमाहित करता हुआ विचरण करे ।