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जो शिष्य लज्जाशील और इन्द्रिय-विजेता होता है, वह
सुविनीत बनता है ।
जो
गुरुशिष्य
गुरु
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की आशातना नही करता, वह पूज्य है ।
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जो साधक गुरुजनो की अवहेलना करता है, वह कभी बन्धन से मुक्त नही हो सकता ।
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जैसे विनीत घोडा चाबुक को देखते ही उन्मार्ग को छोड़ देता है, वैसे ही विनीत शिष्य गुरु के इंगित और आकार को देखकर अशुभ प्रवृत्ति को छोड दे ।