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बाल और पण्डित
६२३
पृथ्वीकाय आदि जीवो के साथ दुर्व्यवहार करता हुआ बाल जीव पाप कर्मो मे लिप्त रहता है ।
६२४
पण्डित मुनि बाल और अवाल भाव की तुलना करे, और बाल भाव को छोड़ कर अबाल भाव का आचरण करे ।
२५
पाप कर्म को जानने वाला मेधावी पुरुष ससार मे रहते हुए भी पापो को नष्ट करता है । जो पुरुष नए कर्म नही बाधता उसके सभी पापकर्म नष्ट हो जाते हैं ।
२६
अज्ञानी प्रवृत्तिया तो काफी करते है, पर वे सभी कर्मोत्पादक होने से पूर्वबद्ध कर्मों का क्षय नही कर पाती, जबकि ज्ञानी की प्रवृत्तिया सयम वाली होने से अपने पूर्व बद्ध कर्मो को क्षय कर सकती है । जो वस्तुत. लोभ और भय से दूर है और सन्तोष गुण से विभूषित होने से वे पाप वृत्ति नही करते ।
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वाल जीव एक एक महिनो का त्याग करके दर्भ के अग्रभाग पर रहे उतने भोजन से पारणा करता है पर वह तिथंकर प्ररुपित धर्म की सोलवी कला को भी प्राप्त नही कर सकता ।