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अध्यात्म और दर्शन (कामादि) २६१
९१० कठिनाई से छोड़ने योग्य इन काम भोगो को सदैव के लिए छोड़ दो।
९११ काम भोग कठिनाई से त्यागे जाते हैं।
६१२ मानव समाज काम भोगो मे आसक्त है।
ये भोग कर्मों की संगति कराने वाले होते हैं।
६१४ काम भोग ससार को बढ़ाने वाले है, ऐसा समझते हुए उन्हे पतला कर दें (क्षीण कर दें)।
काम भोग निश्चय ही अनर्थो की खान है ।
६१६ ये काम भोग शल्य के समान है विष के समान है, और विष वाले सर्प के समान हैं।
६१७
काम भोगो पर विजय प्राप्त करना बडा ही कठिन है।
जो काम भोगो के रस मे गृद्ध हैं, वे अन्त मे असुरकाया मे उत्पन्न होते हैं।