________________
अनिष्ट प्रवृत्ति
८९२ असाधुकर्मी महान् ताप भोगता है।
८६३ यहा पर प्राणी दुष्कृत्यो से ही दुःखी होता है।
८६४ अशातना मे ( आज्ञा भग मे ) मोक्ष नही है।
८९५ दूसरो की निंदा अश्रेयस्कारी ही है।
८९६ निन्दा ही पाप-है।
८६७ वैर भावना मे वधे हुए नरक को प्राप्त होते हैं।
८९८ हसीवाली (पाप क्रिया को) छोड दो।
८६६ मिथ्या दृष्टि वाले अनार्य हैं ।
8००
बहुत निद्रा भी मत लो।
६०१ प्राणी ही प्राणियो को क्लेश पहुचाते हैं।