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मानव जीवन
८७५
देवता भी तीन बातो को चाहते हैं-मनुष्य जीवन, आर्य क्षेत्र मे जन्म और श्रेष्ठ कुल की प्राप्ति ।
८७६
इस संसार मे मानव को चार अग मिलने अत्यन्त कठिन हैं मनुष्यत्व, धर्म का सुनना, सम्यक् श्रद्धा और संयम मे पुरुषार्थ ।
८७७ मनुष्य जीवन मूल धन है, देवगति उसमे लाभ है, मूल धन के नाश होने पर नरक तिर्यञ्च गति रूप हानि होती है।
८७८
मनुष्य जन्म निश्चय ही वडा दुर्लभ है।
८७६ संसार में प्रात्माएं क्रमश. विकाश को प्राप्त करते करते मनुष्य भव को प्राप्त करती हैं ।
८८० पूर्व संचित कर्मों के क्षय के लिए ही यह देह धारण करनी चाहिए।