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धर्म और नीति (धर्म) १६
उत्तम धर्म का श्रवण मिलना निश्चय ही दुर्लभ है।
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धर्म गाव में भी हो सकता है और जंगल मे भी, वस्तुतः धर्म न कही गांव में होता है और न कही जगल मे ही किन्तु वह तो अन्तरात्मा मे होता है।
सरल आत्मा की शुद्धि होती है और शुद्ध आत्मा मे ही धर्म स्थिर रह सकता है।
धर्भ ही एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जिससे आत्मा का शुद्धि करण होता है।
साधक की अपनी प्रज्ञा ही समय पर धर्म की समीक्षा कर सकती है।
विवेक ज्ञान से ही धर्म के साधनो का निर्णय होता है।
धर्मों के वेष आदि के नाना विकल्प जन साधारण में परिचय के लिए है।