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पापपुण्य
८६८ पापानुष्ठान अन्ततः दुःख ही देते हैं ।
८६६ इस जीवन मे किए हुए सत्कर्म इस जीवन मे सुखदायी होते है और इस जीवन में किए हुए सत्कर्म अगले जीवन मे भी सुखदायी होते हैं ।
८७०
मनुष्य के सभी सत्कर्म सफल होते हैं ।
८७१ पाप से आत्मा को लौटादो।
८७२ जिसने आश्रव को रोक दिया है, और जो इन्द्रियो का दमन करने वाला है उसके पाप कर्म नही वधा करते है ।
८७३ पापकर्म न तो करे न करावें।
८७४ मेधावी आत्मा ध्यान द्वारा ही पापो को दूर कर देता है ।