________________
रागद्वेष
८६१
वन्धन दो प्रकार के हैं, प्रेम का वन्धन और द्वेष का बन्धन ।
राग और द्वेष ये दोनो कर्म के बीज हैं । कर्म मोह से उत्पन्न होता है, कर्म ही जन्ममरण का मूल है, और जन्म मरण ही वस्तुतः दुःख है।
८६३ मनोज्ञ शब्द आदि राग के हेतु होते हैं, और अमनोज्ञ द्वेष के हेतु हैं।
५६४ रागवृत्ति से सम्बन्धित मूर्छा दो प्रकार की है, माया सम्बन्धी और लोभ सम्वन्धी।
वैर का अनुबंध महान् भय वाला होता है ।
८६६ द्वेष को काट डालो और राग को हटादो।
८६७ रागद्वेष आदि मोहपाश तीव्र है और भयंकर हैं।