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मनोनिग्रह
८५५ संकट में मन को ऊंचा नीचा अर्थात् डावाडोल नही होने देना चाहिए।
८५६ जो अपने मन को अच्छी तरह से परखना जानता है, वही सच्चा निर्ग्रन्थ साधु है।
८५७ ससार मे अदीन भाव से रहना चाहिए ।
८५८ जीवन मे भयभीत होकर मत चलो।
६५६ यह मन वडा ही साहसिक भयकर दुष्ट घोडा है जो वडी तेजी के साथ दौड़ता रहता है । मैं धर्मशिक्षा रूप लगाम से उस घोडे को अच्छी तरह से वश मे किए रहता हूँ।
८६० मनोगुप्तता से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता है।