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अध्यात्म और दर्शन ( श्रप्रमाद ) २७१
८४३
प्रमाद मत करो ।
८४४
स्वभाव से ही जीव बहुत प्रमादी है ।
८४५
ज्ञानी कभी भी प्रमाद नही करें।
८४६
अपनी आत्मा की रक्षा करने वाला अप्रमादी होता हुआ विचरे ।
८४७
इसमे मेरा ही कल्याण है ऐसा विचार कर प्रमाद का सेवन न करें ।