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अध्यात भार ५॥ [Iny in
८२१ अज्ञानी आत्मा पाप करके भी उस पर अहकार करता है।
८२२ जो अज्ञान के कारण पथभ्रष्ट होगया है उसे फिर भविष्य में सवोधि मिलना कठिन है।
८२३ अज्ञानी आत्मा क्या करेगा ? वह पुण्य और पाप को कैसे जान पाएगा?
८२४ जो न जीव और अजीव को जानता है वह सयम को कैसे जान पाएगा?
८२५ जितने भी अज्ञानी तत्व बोध हीन पुरुष हैं, वे सब दुःख के पान्त हैं । इस अनन्त ससार मे वे मूढ़ प्राणी बार-बार विनाश को प्राप्त होते रहते है।
अज्ञानी जीव विवश हुए अंधकाराच्छन्न आसुरी गति को प्राप्त होते हैं।