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अज्ञान
८१४
मोहाच्छन्न अज्ञानी साधक संकट आने पर, धर्म शासन की अवज्ञा कर फिर संसार की ओर लोट पडते है ।
८१५
अज्ञानी सावक जब कभी असत्य विचारो को सुन लेता है तो वह उन्ही मे उलझ कर रह जाता है ।
८१६
अज्ञानी का सग नही करना चाहिए ।
८१७
अज्ञानी सदा सोये रहते हैं और ज्ञानी सदा जागते रहते है ।
८१८
यह समझ लिजीए कि संसार मे अज्ञान तथा मोह ही अहित और दु.ख करने वाले है ।
८१६
अधा अधे का पथ प्रदर्शक बनता है तो वह अभीष्ट मार्ग से दूर भाग जाता है |
८२०
अज्ञानी साधक उस जन्मान्ध व्यक्ति के समान है जो सछिद्र नौका पर चढकर नदी किनारे पचहुँना तो चाहता है पर किनारा आने के पहले ही प्रवाह मे डूब जाता है ।