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________________ स्नेह सूत्र ८०७ स्नेह पाश में बंधे हुए मुनि की स्वजन उसी तरह चोकसी रखते हैं जिस तरह नए पकडे हुए हाथी की। ८०८ माता, पिता, आदि का स्नेह सम्बन्ध छोडना उसी तरह कठिन है जिस तरह समुद्र को पार करना । ८०९ मुनि संसर्ग को ससार का कारण समझ कर उसका परित्याग कर देवें। ८१० पूर्व संयोगों को छोडकर फिर किसी भी वस्तु में स्नेह न करें। ८११ जैसे शरदऋतु का कुमुद जल मे लिप्त नही होता, वैसे तूं भी अपने स्नेह को छोड़कर निर्लिप्त बन । ८१२ जो तेरे से स्नेह करता है, उससे भी तूं नि स्नेह भाव से रह । स्नेह के वन्धन भयकर हैं।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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