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________________ धर्म और नीति (धर्म) १७ जो पथिक लम्बी यात्रा में अपने साथ पाथेय लेकर चलता है वह आगे चल कर भूख और प्लास से तनिक भी पीड़ित न होकर अत्यन्त सुखी होता है। इसी प्रकार जो मनुष्य भली-भाति धर्माचरण करके परलोक जाता है वह वहाँ जाकर लघुकर्मी तथा पीडा रहित होकर अत्यन्त सुखी होता है । जिस प्रकार मूर्ख गाड़ीवान जानता हुआ भी साफ मार्ग को छोड़कर विषममार्ग पर जाता है और गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है। ५८ उसी प्रकार अज्ञानी मानव भी, धर्म को छोडकर और अधर्म को ग्रहण कर अन्त में मृत्यु के मुह मे पड़कर जीवन की धुरी टूटने पर शोक करता है। किसी समय तीन' वणिक पुत्र मूल पू जी लेकर धन कमाने निकले । उनमे से एक को लाभ हुआ, दूसरा अपनी मूल पूजी ज्यो की त्यो बचा लाया। और तीसरा मूल को भी गवाकर वापस आया । यह व्यापार की उपमा है, इसी प्रकार धर्म के विषय मे भी जानना चाहिए।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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