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प्रशस्त
८०१ लोकानुसार आचरण मत करो।
८०२
बुद्ध ज्ञानी धर्म के पार पहुंचे हुए होते हैं ।
८०३
जैसा वीतराग देव ने फरमाया है तदनुसार जो आचरण करता है उसको संसार का भय कैसे हो सकता है ?
८०४ जो सम्यग्दर्शी है वह आवर्त यानी जन्म जरा मरण रूप संसार को भलीभांति जानता है ।
८०५ भावो की विशुद्धि से निर्ममत्व भावना मोक्ष की प्राप्ति होती है।
८०६ श्री सघ कमल रूप है जिसके हजारो साधुरूपी सुन्दर पन्त लगे हुए हैं, ऐसा श्री सघ का हमेशा कल्याण हो ।