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श्रध्यात्म और दर्शन (मिक्षाचरी) २५१
७६६
भिक्षा न मिलने पर जो खेद प्रकट नही करता और मिलने पर प्रशसा नही करता, वह पूज्य है ।
७७०
सरस या निरस जैसा भी आहार समय पर उपलब्ध होजाय, साधक उसे 'मधुघृत' की तरह प्रसन्न चित्त से खाए ।
७७१
मुनि संयम निर्वाह के लिए आहार ग्रहण करे ।
७७२
मुनि पक्षी की भांती कल की अपेक्षा न रखता हुआ पात्र लेकर भिक्षा के लिए परिभ्रमण करे ।
७७३
मुनि स्वाद के लिए न खाए, बल्कि जीवन निर्वाह के लिए खाए ।