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________________ अध्यात्म मौर वर्शन (मोक्ष) २४५ ७५२ जो संसार के सब प्राणियो को आत्मवत् देखता है, ससार को अशाश्वत समझता है और अप्रमत्त भाव से सयम मे रहता है वही मोक्ष का अधिकारी है। ७५३ जो साधक मोक्ष के अतिरिक्त कही भी रूची नही रखता वही अटल श्रद्धा वाला माना गया है। ७५४ जो साधक अरति को दूर रखता है, वह क्षण भर मे मुक्त हो जाता है। ७५५ भावि कर्मों का आश्रव रोकने वाला साधक पूर्व सचित कर्मों का भी क्षय कर देता है। ७५६ जो ढलति हुयी उम्र मे भी संयम के मार्ग मे चल पडते हैं, और तप संयम क्षमा तथा ब्रह्मचर्य को प्रिय समझ कर उनमे रमण करते हैं, वे भी अमरत्व को प्राप्त हो जाते हैं। ७५७ सर्वदर्शी ज्ञानियो ने ज्ञान दर्शन चारित्र और तप को ही मोक्ष का मार्ग बतलाया है। ७५८ कर्म बन्ध के कारणो को ढूढो, उनका छेद करो, और फिर क्षमादि के द्वारा अक्षय यश का सचय करो साधक पार्थिव शरीर को छोड़कर सद्गति को प्राप्त करता है।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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