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अनित्यता
७३१ यह शरीर अनित्य है, अशुद्ध है और अशुद्धि से ही उत्पन्न हुआ है।
७३२ यह वास सयोग अशाश्वत् है और दुःख एवं क्लेशो का ही भाजन है।
७३३ गुर आदि के आश्रित रहता हुआ गुप्ति धर्म का पालन करता
हुआ वैठे।
७३४ अगुप्ति वाला आज्ञा से रहित होता है ।
७३५ अमनोज्ञ की समुत्पत्ति ही दुःख है।
सब जगह किसी भी पदार्थ के प्रति ललायित मत हो ।