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अध्यात्म और दर्शन (कर्म) २२६
७०० असत् कर्म के हेतु-राग और द्वेष हैं ।
७०१ प्रदुष्ट चित्त ही असत कर्म को एकत्र करता है।
७०२ कर्म निश्चय ही बलवान हैं ।
७०३ मोह ही से कर्मों का उदय होता है।
७०४ कर्मों का फल अत्यन्त प्रभाव कारी होता है ।
७०५ प्राणिजन कर्मों से ही डूबते हैं ।
७०६ जन्म और मरण का मूल कर्म ही है ।
७०७ शुभ कर्मों से साता रूप सुख शान्ति फैलती है ।
७०८ (आत्मा) अपने किये हुए कर्मो के अनुसार ही (परलोक) को जाता है।