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कर्म
६६५ किए हुए कर्मो को बिना भोगे मुक्ति नही है।
सभी प्राणी अपने-अपने सचित कर्मों के कारण ही ससार मे आते-जाते है, और कर्माअनुसार भिन्न-भिन्न योनियो मे पैदा होते हैं। क्योकि कर्म के भोगे विना जीव को छुटकारा नही मिलता।
६६७ प्राणिजन अपने-अपने कर्मों के अनुसार भिन्न-भिन्न योनियो को प्राप्त हुए हैं। कर्मों की अधीनता के कारण एकेन्द्रिय आदि की अवस्था में वे दु.खी रहते हैं। अशुभ कर्मों के कारण जन्म जरा और मरण से सदा भयभीत रह कर गतिचतुष्टय के रूप से संसार मे भटकते रहते हैं।
६६८ कर्मों के फल भोगने पड़ते हैं, ऐसा समझ कर नये कर्मो से क्रिया को रोकने के लिए तथा सचित कर्मों को क्षय करने के लिए बुद्धिमान पुरुष को सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए।
६६६ जैसे पापकर्ता चोर नकाब लगाने के मौके पर पकडा जाकर अपने कर्म से मारा जाता है । ठीक वैसे ही इस लोक मे एव परलोक मे कृतकर्मा आत्मा को कृत कर्म का फल भोगना पड़ता है । क्योकि कृत कर्मों से कभी फदा नही छूटता ।