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अध्यात्म और दर्शन (वारणीविवेक) २२१
६७४ हंसते हुए नही बोलना चाहिए।
६७५ जो विचार पूर्वक सुन्दर व परिमित शब्द बोलता है, वह सज्जनो मे प्रशंशा पाता है ।
६७६ बुद्धिमान ऐसी भाषा बोले जो हितकारी, हो और सभी को प्रिय हो।
६७७ वाणी से वोले हुए दुष्ट और कठोर वचन जन्म जन्मात्तर के वैर और भय के कारण बन जाते हैं।
६७८
विग्रह वढाने वाली बात नही करनी चाहिए।
६७६
बहुत नही बोलना चाहिए।
६८० विना बुलाए बीच मे कुछ नहीं बोलना चाहिए, बुलाने पर भी असत्य जैसा कुछ न कहे ।
६८१ वचन गुप्ति से निर्विकार स्थिति प्राप्त होती है।